मथुरा नगर के पश्चिम में लगभग 21 किमी की दूरी पर यह पहाड़ी स्थित है। यहीं पर गिरिराज पर्वत है जो 4 या 5 मील तक फैला हुआ है। इस पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल है।पुलस्त्य ऋषि के श्राप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। कहते हैं इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अँगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। गर्ग संहिता में गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे वृन्दावन में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला गोलोक का मुकुटमणि कहा गया है।
Saturday, November 2, 2013
Sunday, October 27, 2013
Saturday, October 12, 2013
Sunday, September 15, 2013
Radha G ka playing bord spacial news watching on neonews
CCTV Security Surveillance , Epbx system,
Computer Hardware and Networking
Services and Installation
Rayo Systems
Abhishek Sharma
IT Consultant
Goverdhan Mathura
Call us: +919410040059
+919058780117
Email us: abhishek.shm09@gmail.com
inforayosystems@gmail.com
web Link: www.rayosystems.com
www.girirajmaharaj.blogspot.com
www.brajkos.blogspot.com
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Monday, July 22, 2013
गुरु पूर्णमा के पावन पर्व पर गोवर्धन गिर्राज जी
गुरु
पूर्णमा के पावन पर्व पर गोवर्धन गिर्राज जी में पधारे भक्तो का एक छोटा
सा दृश्य आप सब मित्रो से अनुरोध हे । जो गिर्राज जी न आ सके हो मेरे साथ
बोले गिर्राज धरन की जय ।
\
Deepak Kaushik
Abhishek Sharma (Govardhan)
Thursday, May 23, 2013
Sunday, March 24, 2013
लट्ठामार होली, बरसाना
लट्ठामार होली, बरसाना
निश्छ्ल प्रेम भरी गालियां और लाठियां इतिहास को दोबारा दोहराते हुए नज़र
आते हैं। बरसाना और नन्दगाँव में इस स्तर की होली होने के बाद भी आज तक कोई
एक दूसरे के यहाँ वास्तव में कोई आपसी रिश्ता नहीं हुआ। आजकल भी यहाँ टेसू
के फूलों से होली खेली जाती है, रसायनों से पवित्रता के कारण बाज़ारू
रंगों से परहेज़ किया जाता है। अगले दिन नन्दबाबा के गाँव में छ्टा होती
है। बरसाना के लोह-हर्ष से भरकर मुक़ाबला जीतने नन्दगाँव आयेगें। यहाँ गायन
का एक बार फिर कड़ा मुक़ाबला होगा। यशोदा कुण्ड फिर से स्वागत का गवाह बनेगा, भूरा थोक में फिर होगी लट्ठा-मार होली।
Sunday, January 13, 2013
Girraj dharan ki jai....
Govardhan shree krishna uthaye, gwal waal hai tek lagaye.
Varsha karte indra thakenge, haani tanik bhi kar na sakenge.
Girraj maharaj ki jai....
Girraj dharan ki jai....
Varsha karte indra thakenge, haani tanik bhi kar na sakenge.
Girraj maharaj ki jai....
Girraj dharan ki jai....
Thursday, January 10, 2013
Wednesday, January 2, 2013
Goverdhan Maharaj Ki Jay
भगवान् को अपने भक्त सदैव ही प्रिये है,
और अपने भक्तो पर सदैव ही उनकी करुणा बरसती रहती है!
ऐसा ही एक भक्त था,
नाम था गोवर्धन!
गोवर्धन एक ग्वाला था,
बचपन से दूसरों पे आश्रित, क्योंकि उसका कोई नहीं था
जिस गाँव में रहता,
वहां की लोगो की गायें आदि चरा कर जो मिलता,उसी से अपना जीवन चलाता!
पर गाँव के सभी लोग उस से बहुत प्यार करते थे!
एक दिन गाँव की एक महिला,जिसे वह काकी कहता था,
के साथ उसे वृन्दावन जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ!
उसने वृन्दावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी जी के बारे बहुत कुछ सुना था,
सो दर्शन की इच्छा तो मन में पहले से थी!
वृन्दावन पहुँच कर जब उसने बिहारी जी के दर्शन किये,
तो वो उन्हे देखता ही रह गया
और उनकी छवि मेंखो गया!
एकाएक उसे लगा के जैसे ठाकुर जी उसको कह रहे है..
"आ गए मेरे गोवर्धन!
मैं कब से प्रतीक्षा कर रहा था,
मैं गायें चराते चराते थक गया हूँ,
अब तू ही मेरी गायें चराने जाया कर!"
गोवर्धन ने मन ही मन
"हाँ" कही!
इतनी में गोस्वामी जी ने पर्दा दाल दिया, तो गोवर्धन का ध्यान टूटा!
जब मंदिर बंद होने लगा,तो एक सफाई कर्मचारी ने उसे बाहर जाने को कहा!
गोवर्धन ने सोचा,
ठीक ही तो कह रहा है,
सारा दिन गायें चराते हुए ठाकुर जी थक जाते होंगे,सो अब आराम करेंगे!
तो उसने सेवक से कहा,..
ठीक है,पर तुम बिहारी जी से कहना, कि कल से उनकी गायें चराने मैं ले जाऊंगा!
इतना कह वो चल दिया!
सेवक ने उसकी भोली सी बात गोस्वामी जी को बताई,
गोस्वामी जी ने सोचा,कोई बिहारी जी के लिए अनन्य भक्ति ले कर आया है,
चलो यहाँ रह कर गायें भी चरा लेगा,
और उसके खाने पीने,रहने का इंतजाम मैं कर दूंगा!
गोवर्धन गोस्वामी जी के मार्ग दर्शन में गायें चराने लगा!
सारा सामान और दोपहर का भोजन इत्यादि उसे वही भेज दिया जाता!
एक दिन मंदिर में भव्य उत्सव था,
गोस्वामी जी व्यस्त होने के कारण गोवर्धन को भोजन भेजना भूल गए!
पर भगवान् को तो अपने भक्त का ध्यान नहीं भूलता!
उन्होने अपने एक वस्त्र में कुछ मिष्ठान इत्यादि बांधे और पहुँच गए यमुना पे गोवर्धन के पास..
गोवर्धन ने कहा,
आज बड़ी देर कर दी,
बहुत भूख लगी हैं!
गोवर्धन ने जल्दी से सेवक के हाथ से पोटली लेकर भर पेट भोजन पाया!
इतने में सेवक जाने कहाँ चला गया,
अपना वस्त्र वहीँ छोड़ कर!
शाम को जब गोस्वामी जी को भूल का एहसास हुआ,
तो उन्होने गोवर्धन से क्षमा मांगी
तो गोवर्धन ने कहा.
"अरे आप क्या कह रहे है,
आपने ही तो आज नए सेवक को भेजा था,
प्रसाद देकर, ये देखो वस्त्र जो वो जल्दी में मेरे पास छोड़ गया!"
गोस्वामी जी ने वस्त्र देखा तो गोवर्धन पर बिहारी जी की कृपा देख आनंदित हो उठे!
ये वस्त्र स्वयं बिहारी जी का पटका
(गले में पहनने वाला) था,जो उन्होने खुद सुबह उनको पहनाया था!
भक्त और भगवान् की जय...
और अपने भक्तो पर सदैव ही उनकी करुणा बरसती रहती है!
ऐसा ही एक भक्त था,
नाम था गोवर्धन!
गोवर्धन एक ग्वाला था,
बचपन से दूसरों पे आश्रित, क्योंकि उसका कोई नहीं था
जिस गाँव में रहता,
वहां की लोगो की गायें आदि चरा कर जो मिलता,उसी से अपना जीवन चलाता!
पर गाँव के सभी लोग उस से बहुत प्यार करते थे!
एक दिन गाँव की एक महिला,जिसे वह काकी कहता था,
के साथ उसे वृन्दावन जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ!
उसने वृन्दावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी जी के बारे बहुत कुछ सुना था,
सो दर्शन की इच्छा तो मन में पहले से थी!
वृन्दावन पहुँच कर जब उसने बिहारी जी के दर्शन किये,
तो वो उन्हे देखता ही रह गया
और उनकी छवि मेंखो गया!
एकाएक उसे लगा के जैसे ठाकुर जी उसको कह रहे है..
"आ गए मेरे गोवर्धन!
मैं कब से प्रतीक्षा कर रहा था,
मैं गायें चराते चराते थक गया हूँ,
अब तू ही मेरी गायें चराने जाया कर!"
गोवर्धन ने मन ही मन
"हाँ" कही!
इतनी में गोस्वामी जी ने पर्दा दाल दिया, तो गोवर्धन का ध्यान टूटा!
जब मंदिर बंद होने लगा,तो एक सफाई कर्मचारी ने उसे बाहर जाने को कहा!
गोवर्धन ने सोचा,
ठीक ही तो कह रहा है,
सारा दिन गायें चराते हुए ठाकुर जी थक जाते होंगे,सो अब आराम करेंगे!
तो उसने सेवक से कहा,..
ठीक है,पर तुम बिहारी जी से कहना, कि कल से उनकी गायें चराने मैं ले जाऊंगा!
इतना कह वो चल दिया!
सेवक ने उसकी भोली सी बात गोस्वामी जी को बताई,
गोस्वामी जी ने सोचा,कोई बिहारी जी के लिए अनन्य भक्ति ले कर आया है,
चलो यहाँ रह कर गायें भी चरा लेगा,
और उसके खाने पीने,रहने का इंतजाम मैं कर दूंगा!
गोवर्धन गोस्वामी जी के मार्ग दर्शन में गायें चराने लगा!
सारा सामान और दोपहर का भोजन इत्यादि उसे वही भेज दिया जाता!
एक दिन मंदिर में भव्य उत्सव था,
गोस्वामी जी व्यस्त होने के कारण गोवर्धन को भोजन भेजना भूल गए!
पर भगवान् को तो अपने भक्त का ध्यान नहीं भूलता!
उन्होने अपने एक वस्त्र में कुछ मिष्ठान इत्यादि बांधे और पहुँच गए यमुना पे गोवर्धन के पास..
गोवर्धन ने कहा,
आज बड़ी देर कर दी,
बहुत भूख लगी हैं!
गोवर्धन ने जल्दी से सेवक के हाथ से पोटली लेकर भर पेट भोजन पाया!
इतने में सेवक जाने कहाँ चला गया,
अपना वस्त्र वहीँ छोड़ कर!
शाम को जब गोस्वामी जी को भूल का एहसास हुआ,
तो उन्होने गोवर्धन से क्षमा मांगी
तो गोवर्धन ने कहा.
"अरे आप क्या कह रहे है,
आपने ही तो आज नए सेवक को भेजा था,
प्रसाद देकर, ये देखो वस्त्र जो वो जल्दी में मेरे पास छोड़ गया!"
गोस्वामी जी ने वस्त्र देखा तो गोवर्धन पर बिहारी जी की कृपा देख आनंदित हो उठे!
ये वस्त्र स्वयं बिहारी जी का पटका
(गले में पहनने वाला) था,जो उन्होने खुद सुबह उनको पहनाया था!
भक्त और भगवान् की जय...
Saurav Sharmma (Govaradhan)
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